सिंधु सभ्यता
लोथल
सिंधु घाटी सभ्यता का एक अद्भुत बंदरगाह
परिचय
लोथल भारत की सबसे प्राचीन और उन्नत सभ्यताओं में से एक, सिंधु घाटी सभ्यता का एक महत्वपूर्ण स्थल है। यह आज के गुजरात राज्य के भाल क्षेत्र में स्थित है। लोथल का अर्थ होता है – “मृतकों का टीला”। यह स्थल न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि पुरातत्व प्रेमियों के लिए भी बेहद आकर्षक है। में जब पहली बार इस जगह को देखने गई थी तब इस शहर की नगररचना देखकर आश्चर्य में रह गई थी ये मेरी तरह सभी इतिहास प्रेमियोंको उस सभ्यता के बारेमें उसकी भव्यता के बारेमें सोचनेमे मजबूर कर देता हैं । जहां आज भी हम ऐसा शहर नहीं बना सकते उन लोगों कैसे ई.पू.2400 मतलब की ई .4400 पहले कैसे ऐसा सुनियोजित शहर बनाया होगा ?
यहां नीचे एक ऐसा चित्र दिया गया है जिससे हम लोथेल बंदरगाह कैसा दिखता होगा उसका अनुमान लगा सकते है।
लोथल का बंदरगाह – विश्व का सबसे पुराना डॉकयार्ड
लोथल को खासतौर पर इसके प्राचीन बंदरगाह (Dockyard) के लिए जाना जाता है, जो दुनिया के पहले डॉक में से एक माना जाता है। इस बंदरगाह की मदद से व्यापारिक जहाज़ समुद्र और नदी के रास्तों से बाहर और भीतर आते थे। यह जल मार्ग से व्यापार के लिए एक रणनीतिक केंद्र था। भारत का व्यापार प्राचीनकाल से कितना अद्भुत था ये इससे पता चलता है।भारत में सिंधु सभ्यता के नगरों में पाई जानेवाली मुद्राओं के जैसी मुद्राएं मिस्र में भी मिली है इस वजह से हमें पता चलता है कि भारत का व्यापार उनदिनों में कहा तक था। लोग समुद्री मार्ग से व्यापार करते थे।मनके,कीमती पत्थर,आभूषण आदि की निकास होती थी वस्तुओं को पेक करने के बाद उसपर सिल लगाई जाती थी ।ये सिल पर घोड़ा, बैल जैसी आकृतियां होती थी
लोथल का आज का दृश्य
शिल्प और व्यापार
लोथल के निवासी बेहतरीन मनके बनाने, सिरेमिक बर्तन, और धातु से वस्तुएं बनाने के लिए प्रसिद्ध थे। यहाँ से कई मनके, मिट्टी की सीलें (Seals), वजन करने के उपकरण और टेराकोटा की मूर्तियाँ मिली हैं। इससे पता चलता है कि यहाँ एक उन्नत और व्यवस्थित व्यापार प्रणाली थी।
मिट्टी का खिलौना बैलगाड़ी
मिट्टी के बर्तन
नगर योजना और वास्तुकला
लोथल की नगर योजना बहुत ही वैज्ञानिक थी। घरों में जल निकासी प्रणाली, स्नानघर, और ईंटों से बने फर्श मिले हैं। गलियाँ सीधी और चौड़ी थीं, जिससे उस समय की उन्नत सामाजिक सोच झलकती हैं।घर में सामान्य तौर पर दो या तीन कमरे होते थे। और हर घर में उपयोग में लिया हुआ पानी सीधे घरकी नाली के जरिए गली की गटर नाली में और फिर वह से नगर की मुख्य गटर में जाता था और वो गटर पूरे नगर का पानी नगर के बाहर निकाल देती थी।कुछ मकान में 5,6 जैसे कमरे भी है ।ये नगर के समृद्ध लोगों के घर होंगे
मनके बनाने की फैक्टरी
🧱 खुदाई और खोज
लोथल की खुदाई 1954-62 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा की गई थी। खुदाई में वहाँ की संस्कृति, व्यापारिक संबंध, और शहरी व्यवस्था की कई परतें सामने आईं। यहाँ एक पुरातात्विक संग्रहालय भी है जिसमें खुदाई में मिली वस्तुएं रखी गई हैं। यहां खुदाई के समय कई बर्तन,आभूषण मिले है ।नगर से थोड़ी दूर से कई सारे मानवकंकाल एकसाथ मिले है इससे ये अनुमान लगाया जा सकता है कि ये शायद कब्रिस्तान होगा ।
युग्णकंकाल की छविऊपर एक युग्म कंकाल की छवि इसे प्रेमीयुगल कंकाल भी कहते है ये शायद प्रेमीयुगल या फिर पति पत्नी का सब हो सकता है किसी कारण दोनों को एक ही कब्र में दफन किया गया होगा । इससे उस समय के रीतिरिवाज़ों के बारेमें भी जानकारी मिलती है । सिंधु सभ्यता के शहरों में अग्निसंस्कार की प्रथा प्रचलित नहीं थी। मृत्यु के बाद व्यक्ति को दफनाया जाता था । समय के साथ साथ कोतल से जुड़े कई और तथ्य भी सामने आते है।जो सभी को उस पुराने टीले की तरफ आकर्षित करते है।
ऐतिहासिक महत्व
लोथल यह दर्शाता है कि प्राचीन भारत में किस तरह की उन्नत सभ्यता मौजूद थी। यह स्थल आज भी शोधकर्ताओं और इतिहास प्रेमियों के लिए एक खजाना है। जो विदेशी लोग हमे बताते थे के मानव सभ्यता की शरुआत मिस्र संस्कृति से हुई है। उन्हें आज हम गर्व के साथ हमारी प्राचीन भव्यता के बारेमें बता सकते है। और ये सिंधु घाटी सभ्यता के स्थलों की खोज भारत की प्राचीन इतिहास में कई साल पीछे ले जाती है। पहले माना जाता था कि भारतिय इतिहास की शुरुआत वैदिक कल से शुरू होती है।पर सिंधु घाटी सभ्यता के शहरों की खोज के बाद ये भारतीय इतिहास को एकहजार साल पीछे ले गई।
कैसे जाएँ?
निकटतम रेलवे स्टेशन: अहमदाबाद (लगभग 80 किमी
निकटतम हवाई अड्डा: सरदार वल्लभभाई पटेल इंटरनेशनल एयरपोर्ट
सड़क मार्ग से: अहमदाबाद से बस या टैक्सी द्वारा
निष्कर्ष
लोथल न सिर्फ भारत के इतिहास का हिस्सा है, बल्कि यह विश्व सभ्यता के विकास का भी एक अनमोल अध्याय है। अगर आप इतिहास और पुरातत्व में रुचि रखते हैं, तो लोथल आपके लिए एक ज़रूर घूमने योग्य स्थान है।
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